How the collection of wood and cow dung cakes started for Holika Dahan in Bengaluru Ashram?
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On the occasion of #Holi -the festival of colors, Holika Dahan was done on 24.03.2024 with great enthusiasm by the community at Sant Shri Asharamji Bapu Ashram, Bengaluru. Also, many of them observed the Night Vigil for spiritual awakening.
On the occasion of #Holi -the festival of colors, #HolikaDahan was done on 24.03.2024 with great enthusiasm by the community at Sant Shri Asharamji Bapu #Ashram #Bengaluru.
— Ashram Bengaluru🛕 (@AshramBlr) March 26, 2024
Also, many of them observed the Night Vigil for spiritual awakening.
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संत श्री आशारामजी आश्रम का आह्वान- केमिकल के बजाए पलाश के फूलों से खेलें होली
होलिका दहन- बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व
बेंगलुरु: संत श्री आशारामजी आश्रम के अनुसार 25 मार्च को होली-रंगों का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया। इस हेतु आश्रम में एक बैठक सम्पन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता हरिराम गेहलोथ ने की। बैठक में आश्रम संचालक द्वारा होली कार्यक्रम की रुपरेखा निर्धारित की गई थी । जिसमें बताया गया की- होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
इसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। इस बार 24 मार्च को होलिका दहन आश्रम में मुहूर्त अनुसार सूर्यास्त के बाद पारंपरिक लोकगीत व मंत्रोच्चार से किया जायेगा। जिसमें अग्नि जलाने से पहले वे रोली, अखंडित चावल के दाने या अ क्षत, फूल, कच्चा सूत का धागा, हल्दी के टुकड़े, अखंडित मूंग दाल, बताशा (चीनी या गुड़ कैंडी), नारियल और गुलाल चढ़ाते हैं जहां लकड़ियां रखी जाती हैं। वे मंत्र का जाप करते हैं और होलिका जलाते हैं। लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं और अपनी भलाई और खुशी के लिए प्रार्थना करते हैं- ‘सभी प्रकार की नकारात्मकताएं और व्याधियां आज दहन हो जाएं, चहुंओर प्रेम- सद्भाव एवं सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो, समरस समाज का निर्माण हो, ईश्वर से यही प्रार्थना है।‘
आगे बताया गया की- होली की रात्रि चार पुण्यप्रद महारात्रियों में आती है। होली की रात जागरण, जप- ध्यान, महापुरुषों का सान्निध्य पुण्य प्रभाव पैदा करता है। होली का यह त्योहार पलाश के फूलों से बने रंग से ही खेला जाएगा। फूलों के अर्क से बना यह रंग शरीर के रोमकूपों के द्वारा आंतरिक स्रायुमण्डल पर अपना प्रभाव डालता है, जिससे शरीर शुद्ध होकर व चिड़चिड़ापन समाप्त होता है। पलाश के फूलों का रंग रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है। इसमें गर्मी को पचाने की, सप्तरंगों व सप्त धातुओं को संतुलित करने की क्षमता है। पित्त और वायु मिलकर हृदयाघात- हार्टअटैक का कारण बनते हैं, लेकिन जिस पर पलाश के फूलों का रंग छिड़क देते हैं, उसका पित्त शांत हो जाता है। वायु संबंधी 80 प्रकार की बीमारियों को भगाने की शक्ति इस पलाश के रंग में है। पलाश के फूलों से जो होली खेली जाती है, उसमें अन्य रासायनिक रंगों की अपेक्षा पानी की बचत भी होती है। होली के बाद सूर्य की गर्मी तेज होती है जिसकी धूप से भी हमें पलाश का यह रंग बचाता है। सिंघाड़े के आटे से तैयार किया गया गुलाल ऐसी ही वस्तुओं मे से एक है। प्राचीन भारत की होली चंदन, रंग, गुलाल- अबीर का प्रयोग किया जाता था। कार्यक्रम के अंत में आश्रम ने समस्त साधकों को इस दैवी व पावन कार्यक्रम में शामिल होने की अपील की।
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