Deepotsav- 2022 at Bengaluru Ashram.

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Initiative Summary

आश्रम में सहस्त्रदीप प्रज्जवलित कर दीपोत्सव कार्यक्रम मनाया गया

दीपावली दो शब्दों से मिलकर बना है- दीप + आवली, यानी कि दीपक से सजी पंक्तियां।

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दीपावली को लेकर यह भी मान्यदता है कि पांडवों के वनवास के बाद उनके घर वापसी पर भी दीपोत्सव मनाया गया था। इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्याभामा की मदद से असुरराज नरकासुर का वध किया था। उसके बाद भी नरकासुर के अत्यााचार से मुक्ति मिलने की खुशी में नगरवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं। मान्यताओं के अनुसार भगवान राम 14 सालों का वनवास काटकर जिस दिन वापस अयोध्या लौटे थे, उसी दिन अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनके स्वागत में दिवाली मनाई थी। तब से दिवाली पर दीपोत्सव की परंपरा चली आ रही है।

आश्रम में सहस्त्रदीप प्रज्जवलित कर दीपोत्सव कार्यक्रम मनाया गया है। मिट्टी के दीयों से सजा आश्रम का सत्संग पंडाल कुछ ऐसा दिखाई दिया, मानों व्यासपीठ पर सोने का पानी चढ़ गया हो।

झिलमिलातें दीपों की झलकियाँ, इतनी भव्य और दिव्य दिखाई दी कि- सबकी नजरें वहीं पर जाकर टिक जाती थी। इसके अलावा दीयों की रौशनी ने आश्रम के इस रौनक में चार चांद लगा दिए। गौरतलब है कि बेंगलुरु आश्रम में ये छठा दीपोत्सव कार्यक्रम था, जो सफलतापूर्वक आयोजित किया गया। दीपोत्सव की तैयारी काफी दिन पहले से शुरू हो जाती है।

आश्रम के वॉलंटियर्स के सहयोग से दीपोत्सव का कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित किया जाता है।

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