Saint's incarnation is the ultimate benefactor - "Janma Karma Cha Me Divyam"

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Sant Shri Asharamji Ashram, Bengaluru celebrated the 87th incarnation day of respected Bapuji with great enthusiasm by doing satsang-kirtan and lamp lighting by the devotees.

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Saint's incarnation is the ultimate benefactor - "Janma Karma Cha Me Divyam"

Bangalore: Saint Shri #AsharamjiBapu #Ashram, #Bengaluru celebrated the 87th incarnation day of respected Bapuji with great enthusiasm by doing satsang-kirtan and lamp lighting by the devotees. Morning Remembrance Param Pujya Sant Shri Asharamji Bapu is such a great saint, who taught his disciples Bhakti Yoga and Gyan Yoga, as well as Karma Yoga. Pujya Shree says that- Know the art of doing karma and make it Karmayog, then karma will not bind you, but will unite you with God. Make the best use of the powers God has given us to know, believe, and do. By working for the benefactor, the power of doing is put to good use.

Respecting these words of Pujya Bapuji, this incarnation day of Pujyashree becomes an occasion for extensive service to the society by the disciples of Pujyashree all over India, it is celebrated every year as 'Seva-Satsang-Diwas'. Pujya Bapuji says, 'Whatever service we do on this day, we get rid of the desire to do it and we get rid of the greed of enjoyment. The joy that sadhaks must have felt, the pleasure they would have had in kirtan or the satisfaction they would have felt in feeding the poor, the fun they would have felt in distributing notebooks to students and in various service activities, that joy would be indescribable.

A little work done for the sake of others, and a little determination brings joy, peace, and courage to the heart.

संत अवतरण परम हितकारी- “जन्म कर्म च मे दिव्यं”

बेंगलुरु: संत श्री आशारामजी आश्रम, बेंगलुरु में साधकों द्वारा पूज्य बापूजी का 87वा अवतरण दिवस सत्संग-कीर्तन व दीपप्रज्वलन कार्यक्रम के साथ बड़े ही धूम-धाम से मनाया गया। प्रातःस्मरणीय परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ऐसे महापुरुष है, जिन्होंने अपने शिष्यों को भक्तियोग और ज्ञानयोग के साथ-साथ कर्मयोग भी सिखाया है । पूज्यश्री का कहना है कि- कर्म को करने की कला जान लो और उसे कर्मयोग बनाओ तो कर्म आपको बांधने वाले नहीं, भगवान से मिलाने वाले हो जायेंगे । भगवान ने हमें जो जानने, मानने और करने की शक्तियाँ दी हैं, उनका सदुपयोग करो । परहित के लिए कर्म करने से करने की शक्ति का सदुपयोग होता है।

पूज्य बापूजी के इन्हीं वचनों का आदर करते हुए पूज्यश्री के शिष्यों द्वारा पूरे भारत में उनका यह अवतरण दिवस- पुण्य दिवस बनकर समाज की व्यापक सेवा का निमित्त बनता है, इसे हर वर्ष ‘सेवा-सत्संग-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है । पूज्य बापूजी बताते है की- ‘इस दिवस पर जो भी सेवाकार्य करते हैं, वे करने का राग मिटाते हैं, भोगने का लालच मिटाते हैं और भगवान व गुरु के नाते परहित करते हैं। उन साधकों को जो आनंद आता होगा, जो कीर्तन में मस्ती आती होगी या गरीबों को भोजन कराने में जो संतोष का अनुभव होता होगा, विद्यार्थियों को नोटबुक बाँटने में तथा भिन्न-भिन्न सेवाकार्यों में जो आनंद आता होगा, वह आनंद अवर्णनीय होगा।‘

वह जीवन क्या जिस जीवन में, जीवन को मुक्त बना न सके । वह अज्ञानी अभिमानी है, जो मन का मोह मिटा न सके ।।

मिटती है जिससे भ्रांति नही, मिलती है जिससे शांति नही । ऐ पथिक उसका त्याग करो, जो प्रियतम तक पहुँचा न सकें ।।

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