Gopashtami celebrated at Bengaluru Ashram.
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संत श्री आशारामजी आश्रम, बेंगलुरु में "गोपाष्टमी" पर्व का आयोजन हुआ।
Each and every festival in Hindu Sanskriti has a deep importance.
— Ashram Bengaluru🛕 (@AshramBlr) November 6, 2022
Let's Stand For Dharma #धर्मो_रक्षति_रक्षित:#गोपाष्टमी #Gopashtami
1.11.22: Sant Shri Asharamji Bapu explained about worshiping cow on the day of #Gopashtami2022 fulfills our good wishes.https://t.co/3Zx6QMXI0v pic.twitter.com/fx0rrdOmBQ
1.11.22: बेंगलुरु: गार्डन सिटी बेंगलुरु के बनशंकरी में स्थित संत श्री आशारामजी आश्रम में "गोपाष्टमी" पर्व का आयोजन किया गया। प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भ ी "गोपाष्टमी" निमित्त संत श्री आशारामजी बापू के साधकों की भीड़ सुबह से ही आश्रम में आ चुकी थी। सभी ने प्रात:काल से ही गौमाताओं को पवित्र स्नान करा कर गंध, धूप, पुष्पादि से वैदिक मंत्रोच्चार द्वारा पूजा-अर्चना आदि की । आश्रम में गौ माताओं को वस्त्राभूषणों से अलंकृत करके गौ पूजन, गौ- ग्रास, यज्ञ- हवन, गौ- आरती, परिक्रमा, दान-पुण्य आदि विविध धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । इस अवसर पर सभी साधकों ने गौ-प्रदक्षिणा की एवं उनकी चरण रज को माथे पर धारण किया ।
चूँकि गौमाता हम सभी की सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक समरसता और आस्था की प्रतीक हैं। अतः मान्यता है की- गोपाष्टमी पर्व से प्रेरित होकर जो गोपालन, गो-सेवा व गो-रक्षा का प्रण लेता है उसका जीवन धन्य हो जाता है और जीवन की हर मनोकामना पूरी होती है।
पूज्य संत श्री आशारामजी बापू अपने सत्संग में बताते हैं की- गौरक्षा के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण... गोविन्द कहलाए, श्री कृष्ण ने जब 6 वर्ष की आयु में कदम रखा तो मां यशोदा से उन्होंने गाय चराने की इच्छा जताई. उन्होंने कहा कि ‘मैया अब मैं बड़ा हो गया हूं और अब गोपाल बनना चाहता हूं तभी से गौसेवा के साथ "गोपाष्टमी" मनाई जाती है। धर्मधारणा के अनुसार- कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से सप्तमी तक... गो- गोप और गोपियों की सुरक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। अष्टमी के दिन देवराज इन्द्र अहंकार मुक्त होकर भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आयें । इस अवसर पर कामधेनु ने भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और तब से भगवान श्रीकृष्ण... गोविन्द कहलाए, इसीलिए गोविंद के सम्मान मंक गौ-नवरात्रि में कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय गौ माताओं की सेवा-पूजा की जाती है।
गोपाष्टमी का महत्व - सनातन धर्म में गाय, गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन व गोविंद पूज्य हैं। शास्त्र कहते हैं कि सर्वे देवाः स्थिता देहे सर्व देवमयी हि गौ अर्थात गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास है। अतः यह सर्वदेवमयी है। गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों में देवता, रंभाने में प्रजापति और थनों में समुद्र बसते हैं। पद्म पुराण के अनुसार गौमुख में चारों वेदों, सींगों में शंकर व विष्णु, उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, नेत्रों में सूर्य व चंद्र आदि तैंतीस कोटी देवी-देवता विराजमान हैं। बताया कि गोपाष्टमी पर व्रत रखकर गाय की पूजा अर्चना करने से गोविंद की कृपा मिलती है। वास्तव में गोपाष्टमी गाय के पूजन का पवित्र दिन है।
“गावः पवित्रं परमं गावो मांगल्यतुत्तमम् । गावः स्वर्गस्य सोपानं गावो धन्याः सनातनाः ।।“ ( अग्नि पुराण 292/18 )
गौएँ परम पवित्र और मंगलदायिनी है। गौएँ स्वर्ग की सीढ़ी है और गौएँ धन्य और सत्य सनातन है। गौओं में समस्त लोक प्रतिष्ठित हैं।
संस्कृत भाषा में गो शब्द के अर्थ माता, गाय और पृथ्वी है। - पहला अर्थ गाय, दूसरा पृथ्वी, तीसरा माता। और मातृ शब्द का पहला अर्थ है माँ, फिर गाय और फिर पृथ्वी अर्थात् मातृ और गो शब्द, दोनों ही, गाय और पृथ्वी के समानार्थी शब्द है।
पाणिनि के व्याकरण में 'सुसंपन्नोऽयं देशो भाति"-यह देश सुसंपन्न दिखता है कैसे? 'गोमानथ अयम्' अर्थात् यहां बहुत गायें दीखती हैं, इसलिये यह देश संपन्न दिखता है। व्याकरण में 'मान् प्रत्यय समझाने के लिए यह वाक्य आता है। 'मान् प्रत्यय जहां प्रचुरता होती है वहाँ उपयोग होता है। बाहुल्य प्रकट करने के लिए इस्तेमाल होता है। गोमान् यानी एक-दो गाये नहीं, लाखो गाये जहां है वह। यहा लाखों गाये है इसलिये यह देश सुसंपन्न दिखता है।
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